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शैल चतुर्वेदी जी का जीवन परिचय - हिंदी साहित्य के महान कवि

शैल चतुर्वेदी जी का जीवन परिचय

शैल चतुर्वेदी जी का जीवन परिचय : शैल चतुर्वेदी जी हिंदी भाषा के एक प्रसिद्ध कवि, व्यंग्यकार, हास्यकार, गीतकार और अभिनेता थे। 70 और 80 के दशक में वे अपने राजनीतिक व्यंग्य के लिए विशेष रूप से जाने जाते थे। आपको बता दें कि उन्होंने कई हिंदी फिल्मों और टीवी श्रृंखला में भी अभिनय किया था।

उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाओं में "चल गई", "बाईं आँख चल गई", "शैल चतुर्वेदी की कविताएँ", "शैल चतुर्वेदी की हास्य रचनाएँ" और "शैल चतुर्वेदी के गीत" शामिल हैं। वे एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे और उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।

यह लेख शैल चतुर्वेदी जी के जीवन परिचय  की विस्तार से जानकरी प्रदान करता है यदि आप भी इनके बारे में जानना चाहते तो तो आपको यह लेख पूरा पढ़ना चाहिए।

शैल चतुर्वेदी का संक्षिप्त परिचय

प्रचलित नाम शैल चतुर्वेदी
वास्तविक नाम शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी
जन्म 29 जून 1936
जन्मस्थान इलाहाबाद, भारत
मृत्यु 29 अक्टूबर 2007
मृत्यु स्थान मुंबई, भारत
शिक्षा एम.ए. (हिंदी)
पेशा कवि, व्यंग्यकार, हास्यकार, गीतकार, अभिनेता
पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री, फिल्मफेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, आदि
प्रमुख रचनाएँ बाईं आँख चल गई, चल गई, मैं तो हूँ पंछी, हँसी के फव्वारे, हँसी के झोंके, हँसी के ठहाके, हँसी की गूँज, हँसी की दुनिया, उपहार, चितचोर, चमेली की शादी, करीब, आदि
भाषा हिंदी
शैली हास्य, व्यंग्य
विशेषताएँ सरल भाषा, प्रभावशाली, लोकप्रिय
साहित्यिक काल आधुनिक काल

जन्म और परिवार

शैल चतुर्वेदी जी का जन्म 29 जून 1936 को अमरावती, महाराष्ट्र में हुआ था। उनका पूरा नाम शैलेंद्र कुमार चतुर्वेदी था। उनके पिता रामेश्वर दयाल चतुर्वेदी, एक सरकारी अधिकारी थे और माता श्रीमती शांता देवी, एक गृहिणी थीं, भाई-बहन: शैल चतुर्वेदी जी के दो भाई और दो बहनें थीं, पत्नी: श्रीमती दया चतुर्वेदी, एक शिक्षिका थीं। बच्चे: शैल चतुर्वेदी जी के तीन पुत्र हैं - अमित, अतुल और अनिल।

शैल चतुर्वेदी जी का परिवार एक संस्कारी और शिक्षित परिवार था। शैल चतुर्वेदी जी के परिवार का उनके जीवन और करियर पर बहुत प्रभाव रहा। उनके परिवार ने हमेशा उन्हें उनके सपनों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया। शैल चतुर्वेदी जी के पिता उन्हें शिक्षा के महत्व पर बहुत ज़ोर देते थे, जिसके कारण शैल चतुर्वेदी जी एक शिक्षित और संस्कारी व्यक्ति बन पाए।

शैल चतुर्वेदी जी की पत्नी श्रीमती दया चतुर्वेदी ने भी उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे हमेशा शैल चतुर्वेदी जी के साथ खड़ी रहीं और उनके करियर का समर्थन किया।

शिक्षा और करियर

शैल चतुर्वेदी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमरावती में प्राप्त की। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। आपको बता दें कि शैल चतुर्वेदी जी ने अपने करियर की शुरुआत एक लेक्चरर के रूप में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में की। उन्होंने 1960 में सरकारी नौकरी शुरू की और 1992 में सेवानिवृत्त हुए। वे एक प्रसिद्ध कवि, व्यंग्यकार, हास्यकार, गीतकार और अभिनेता थे। 70 और 80 के दशक में वे अपने राजनीतिक व्यंग्य के लिए विशेष रूप से जाने जाते थे। उन्होंने कई हिंदी फिल्मों और टीवी श्रृंखला में भी अभिनय किया।

शैल चतुर्वेदी जी की शिक्षा और करियर दोनों ही बहुत सफल रहे। उन्होंने अपनी शिक्षा के माध्यम से ज्ञान और कौशल प्राप्त किए जो उन्हें अपने करियर में सफल होने में मददगार थे।

शैल चतुर्वेदी जी की रचनाएँ

शैल चतुर्वेदी जी एक प्रसिद्ध कवि, व्यंग्यकार, हास्यकार, गीतकार और अभिनेता थे। उन्होंने विभिन्न विषयों पर लिखा, जिनमें राजनीति, सामाजिक मुद्दे, प्रेम और जीवन शामिल हैं। उनकी रचनाएँ उनके हास्य और व्यंग्य के लिए प्रसिद्ध हैं।

यहाँ शैल चतुर्वेदी जी की कुछ प्रसिद्ध रचनाओं की सूची दी गई है -

कविताएँ

  • चल गई
  • बाईं आँख चल गई
  • मैं तो हूँ पंछी
  • हम हँसते हैं
  • यह दुनिया कैसी है
  • नेताजी
  • चुनाव
  • ब्यूरोक्रेसी
  • शिक्षा
  • न्याय

व्यंग्य और हास्य

  • हँसी के फव्वारे
  • हँसी के झोंके
  • हँसी के ठहाके
  • हँसी की गूँज
  • हँसी की दुनिया

गीत

  • मैं तो हूँ पंछी
  • यह दुनिया कैसी है
  • नेताजी
  • चुनाव
  • ब्यूरोक्रेसी
  • शिक्षा
  • न्याय

अभिनय

  • उपहार (1971)
  • चितचोर (1976)
  • चमेली की शादी (1986)
  • करीब (1998)

शैल चतुर्वेदी जी की रचनाएँ हिंदी भाषा और साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान हैं। उनकी रचनाएँ उनके हास्य और व्यंग्य के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने विभिन्न विषयों पर लिखा, जिनमें राजनीति, सामाजिक मुद्दे, प्रेम और जीवन शामिल हैं।

यहाँ शैल चतुर्वेदी जी की कुछ प्रसिद्ध रचनाओं के बारे में कुछ जानकारी दी गई है -

चल गई: यह शैल चतुर्वेदी जी की सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है। यह कविता एक प्रेमी के बारे में है जो अपनी प्रेमिका के जाने के बाद दुखी है।

बाईं आँख चल गई: यह कविता राजनीतिक व्यंग्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस कविता में शैल चतुर्वेदी जी ने तत्कालीन राजनीतिक नेताओं पर व्यंग्य किया है।

मैं तो हूँ पंछी: यह कविता जीवन के बारे में है। इस कविता में शैल चतुर्वेदी जी ने जीवन की क्षणभंगुरता और अनिश्चितता पर प्रकाश डाला है।

हम हँसते हैं: यह कविता सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस कविता में शैल चतुर्वेदी जी ने समाज में व्याप्त विभिन्न बुराइयों पर व्यंग्य किया है।

यह दुनिया कैसी है: यह कविता दुनिया की वास्तविकता को दर्शाती है। इस कविता में शैल चतुर्वेदी जी ने दुनिया में व्याप्त विभिन्न समस्याओं पर प्रकाश डाला है।

शैल चतुर्वेदी जी की रचनाएँ हिंदी भाषा और साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान हैं। उनकी रचनाएँ उनके हास्य और व्यंग्य के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने विभिन्न विषयों पर लिखा, जिनमें राजनीति, सामाजिक मुद्दे, प्रेम और जीवन शामिल हैं।

शैल चतुर्वेदी जी की भाषा शैली

शैल चतुर्वेदी जी की भाषा शैली सरल, सहज और प्रभावशाली थी। वे अपनी बात को बहुत ही सरल शब्दों में कह देते थे। उनकी भाषा में हास्य और व्यंग्य का पुट होता था।

यहाँ शैल चतुर्वेदी जी की भाषा शैली की कुछ विशेषताएं दी गई हैं -

सरलता: शैल चतुर्वेदी जी की भाषा बहुत ही सरल और सहज होती थी। वे अपनी बात को बहुत ही सरल शब्दों में कह देते थे। उनकी भाषा को समझने में किसी को भी कोई परेशानी नहीं होती थी।

प्रभावशाली: शैल चतुर्वेदी जी की भाषा बहुत ही प्रभावशाली होती थी। वे अपनी बात को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से कह देते थे। उनकी भाषा सुनकर या पढ़कर लोग प्रभावित हो जाते थे।

हास्य और व्यंग्य: शैल चतुर्वेदी जी की भाषा में हास्य और व्यंग्य का पुट होता था। वे अपनी बात को हास्य और व्यंग्य के माध्यम से कह देते थे। इससे उनकी बात और भी प्रभावशाली हो जाती थी।

शैल चतुर्वेदी जी की भाषा शैली हिंदी भाषा और साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान है। उनकी भाषा शैली की वजह से उनकी रचनाएँ बहुत ही लोकप्रिय हुईं।

यहाँ शैल चतुर्वेदी जी की भाषा शैली के कुछ उदाहरण दिए गए हैं:

उदाहरण 1:

"यह दुनिया कैसी है, जहाँ सच बोलने पर झूठ बोलने का आरोप लगता है।"

उदाहरण 2:

"नेताजी कहते हैं, हम गरीबों के लिए काम करते हैं। लेकिन गरीब कहते हैं, हमें तो नेताजी कहीं दिखाई नहीं देते हैं।"

उदाहरण 3:

"चुनाव आते हैं, नेताजी वादे करते हैं। चुनाव चले जाते हैं, वादे भूल जाते हैं।"

शैल चतुर्वेदी जी की भाषा शैली हिंदी भाषा और साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान है। उनकी भाषा शैली की वजह से उनकी रचनाएँ बहुत ही लोकप्रिय हुईं।

शैल चतुर्वेदी जी का हिंदी साहित्य में योगदान और स्थान

शैल चतुर्वेदी जी हिंदी साहित्य के एक प्रमुख स्तंभ थे। वे एक प्रसिद्ध कवि, व्यंग्यकार, हास्यकार, गीतकार और अभिनेता थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को कई तरह से योगदान दिया। यहाँ शैल चतुर्वेदी जी के हिंदी साहित्य में योगदान की कुछ विशेषताएं दी गई हैं -

हास्य और व्यंग्य: शैल चतुर्वेदी जी हिंदी साहित्य में हास्य और व्यंग्य के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में राजनीति, सामाजिक मुद्दे, प्रेम और जीवन जैसे विभिन्न विषयों पर हास्य और व्यंग्य किया। उनकी रचनाओं ने लोगों को हंसाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर किया।

सरल भाषा: शैल चतुर्वेदी जी की भाषा बहुत ही सरल और सहज होती थी। वे अपनी बात को बहुत ही सरल शब्दों में कह देते थे। उनकी भाषा को समझने में किसी को भी कोई परेशानी नहीं होती थी।

प्रभावशाली: शैल चतुर्वेदी जी की भाषा बहुत ही प्रभावशाली होती थी। वे अपनी बात को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से कह देते थे। उनकी भाषा सुनकर या पढ़कर लोग प्रभावित हो जाते थे।

लोकप्रियता: शैल चतुर्वेदी जी की रचनाएँ बहुत ही लोकप्रिय हैं। उनकी रचनाओं को लोगों ने बहुत पसंद किया। उनकी रचनाएँ आज भी लोगों के बीच लोकप्रिय हैं।

शैल चतुर्वेदी जी का हिंदी साहित्य में योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है। इन बिंदुओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शैल चतुर्वेदी जी हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य को कई तरह से समृद्ध किया। उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।

पुरस्कार, सम्मान और उपाधि

वर्ष पुरस्कार
1978 साहित्य अकादमी पुरस्कार (कविता संग्रह "बाईं आँख चल गई" के लिए)
1987 पद्मश्री
1974 मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार
1984 कबीर सम्मान
1985 भारतीय भाषा परिषद पुरस्कार
1986 सुमन सम्मान
1989 महादेवी वर्मा पुरस्कार
1997 श्रीराम शर्मा सम्मान
1957 विद्यावाचस्पति
1974 साहित्य भूषण
1978 साहित्य रत्न
1987 साहित्य शिरोमणि
1997 कवि सम्राट

शैल चतुर्वेदी जी को कई अन्य पुरस्कारों, सम्मानों और उपाधियों से भी सम्मानित किया गया था। वे एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे और उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान दिया।

अन्य पुरस्कार

वर्ष पुरस्कार
1975 आकाशवाणी पुरस्कार
1977 फिल्मफेयर पुरस्कार
1978 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
1983 संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
1992 पद्म भूषण
1997 दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

शैल चतुर्वेदी जी का निधन

शैल चतुर्वेदी जी का निधन 29 अक्टूबर 2007 को मुंबई, भारत में हुआ था। वे 71 वर्ष के थे। वे गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थे और कुछ समय से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था। शैल चतुर्वेदी जी के निधन से हिंदी भाषा और साहित्य को एक बड़ी क्षति हुई।

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